11-07-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

विश्व-कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य धारणाएं

आज के इस संगठन को कौनसा संगठन कहें? गुजरात का संगठन? अपने को गुजरात का तो नहीं समझते हो? जैसे बाप बेहद का मालिक है वैसे भले कहाँ भी निमित्त बने हुए हो लेकिन हो तो विश्व-कल्याणकारी। दृष्टि और वृत्ति अथवा स्मृति में भी विश्व-कल्याणकारी की भावना सदैव रहती है कि गुजरात के कल्याण की भावना रहती है? गुजरात में रहते लक्ष्य तो विश्व का रहता है ना। बेहद के सर्विस में हो ना? यह तो निमित्त ड्यूटी दी हुई है, वह निमित्त बनकर के बजा रहे हो। लेकिन नशा क्या रहता है? वर्णन तो यही करते हो ना हम - विश्व-कल्याणकारी हैं, विश्व का परिवर्तन करना है। जो भी सर्विस करते हो वा सर्विस के साधन बनाते हो उसमें भी शब्द तो विश्व का लिखते हो ना। विश्व का नव निर्माण करने वाले हो। विश्व का परिवर्तन होता जाता है। आवाज़ एक जगह किया जाता है, लेकिन फैलता तो चारों ओर है ना। भले निमित्त एक स्थान पर आवाज़ बुलुन्द करते हो लेकिन फैलता तो चारों ओर है ना। तो विश्व-कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य दो धारणाएं आवश्यक हैं, जिससे हद में रहते भी बेहद का कल्याणकारी बन सकते हैं। अगर वह धारणा न रहे तो उनका आवाज़, उनकी दृष्टि बेहद विश्व के तरफ नहीं पहुँच सकती। विश्व-कल्याणकारी बनने लिए दो धारणाएं कौनसी हैं? आप किन दो धारणाओं के आधार पर विश्व के कल्याण का कर्त्तव्य कर रही हो? विश्व-कल्याण की जो शुभ भावना है उसका प्रत्यक्ष फल तो ज़रूर मिलता है। भावना का फल तो भक्ति मार्ग में भी मिलता है, लेकिन वह अल्पकाल, यहाँ है सदाकाल। उस प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति के लिए मुख्य दो धारणाएं कौनसी हैं? बिगर धारणा के तो अपनी वा सर्विस की उन्नति नहीं हो सकती। वह कर रहे हो और करनी ही है। करेंगे - यह शब्द भी नहीं। करना ही है। मुख्य दो धारणायें हैं। ईश्वरीय रूहाब और साथ में रहम। अगर रूहाब और रहम दोनों ही साथ-साथ में हैं और समान हैं तो दोनों गुणों की समानता से रूहानियत की स्टेज बन जाती। इसको ही रूहानियत वा रूहानी स्थिति कहा जाता है। रूहाब भी पूरा हो और रहम भी पूरा हो। अभी रूहाब को छोड़ सिर्फ रहम करते हो वा रहम को छोड़ सिर्फ रूहाब में आते हो, इसलिए दोनों की समानता से जो रूहानियत की स्थिति बनती है, उसकी कमी हो जाती है। इसलिए सदैव जो कोई भी कर्त्तव्य करते हो वा मुख से शब्द वर्णन करते हो तो पहले चेक करो कि रहम और रूहाब - दोनों समान रूप में हैं? दोनों को समान करने से एक तो अपना स्वमान स्वयं रख सकेंगे, दूसरा सर्व आत्माओं से भी स्वमान की प्राप्ति होगी। स्वमान को छोड़ मान की इच्छा रखने से सफलता नहीं हो पाती है। मान की इच्छा को छोड़ स्वमान में टिक जाओ तो मान परछाई के समान आपके पिछाड़ी में आयेगा। जैसे भक्त अपने देवताओं वा देवियों के पीछे अन्धश्रद्धा वश भी कितने भाग-दौड़ करते हैं। वैसे चैतन्य स्वरूप में स्वमान में स्थित हुई आत्माओं के पीछे सर्व आत्माएं मान देने के लिए आयेंगी, दौड़ेंगी। भक्तों की भाग दौड़ देखी है? आप लोगों के यादगार जड़ चित्र हैं। उनमें भी चित्रकार मुख्य यही धारणा भरते हैं - एक तरफ शक्तियों का रूहाब भी फुल फोर्स में दिखाते हैं और साथ-साथ रहम का भी दिखाते हैं। एक ही चित्र में दोनों ही भाव प्रकट करते हैं ना। यह क्यों बना है? क्योंकि प्रैक्टिकल में आप रूहाब और रहमदिल-मूर्त बने हो। तो जड़ चित्रों में भी यही मुख्य धारणाएं दिखाते हैं। तो आप लोग अभी जब सर्विस पर हो तो सर्विस के प्रत्यक्षफल का आधार इन दो मुख्य धारणाओं के ऊपर है। रहमदिल जरूर बनना है, लेकिन किस आधार पर और कब? यह भी देखना है। रूहाब रखना ज़रूर है, लेकिन कैसे और किस तरीके से प्रत्यक्ष करना है, यह भी देखना है। रूहाब कोई वर्णन करने वा दिखाने से दिखाई नहीं देता, रूहाब नैन-चैन से स्वयं ही अपना साक्षात्कार कराता है। अगर उसका वर्णन करते हैं तो रूहाब बदलकर रोब में दिखाई देता है। तो रोब नहीं दिखाना है, रूहाब में रहना है। 

रोब को भी अहंकार वा क्रोध की वंशावली कहेंगे। इसलिए रोब नहीं दिखाना है, लेकिन रूहाब में जरूर रहना है। जितना-जितना रहमदिल के साथ रूहाब में रहेंगे तो फिर रोब खत्म हो ही जायेगा। कोई कैसी भी आत्मा हो, रोब दिलाने वाला भी हो, तो रूहाब और रहमदिल बनने से रोब में कभी नहीं आयेंगे। ऐसे नहीं कि सरकमस्टान्सेज ऐसे थे वा ऐसे शब्द बोले तो यह करना ही पड़ा। करना ही पड़ेगा, यह तो होगा ही, अभी तो सम्पूर्ण बने ही नहीं हैं- यह शब्द अथवा भाषा इस संगठन में नहीं होनी चाहिए। क्योंकि आप निमित्त सर्विस के हो इसलिए इस संगठन को मास्टर नॉलेजफुल और सर्विसएबल, सक्सेसफुल संगठन कहेंगे। जो सक्सेसफुल हैं वह कोई कारण नहीं बनाते। वह कारण को निवारण में परिवर्तन कर देते हैं। कारण को आगे नहीं रखेंगे। मास्टर नॉलेजफुल, सक्सेसफुल आत्मायें कोई कारण के ऊपर सक्सेसफुल नहीं बन सकती? जो मास्टर नॉलेजफुल, सक्सेसफुल होते हैं वह अपनी नॉलेज की शक्ति से कारण को निवारण में बदली कर देंगे, फिर कारण खत्म हो जायेगा। निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प के ऊपर भी अटेन्शन रखना पड़े। क्योंकि निमित्त बनी हुई आत्माओं के ऊपर ही सभी की नज़र होती है। अगर निमित्त बने हुए ही ऐसे-ऐसे कारण कहते चलते तो दूसरे जो आपको देख आगे बढ़ते हैं, वह आप को क्या उत्तर देंगे? इस कारण से हम आ नहीं सकते, चल नहीं सकते। जब स्वयं ही कारण बताने वाले हैं तो दूसरे के कारण को निवारण कैसे करेंगे? क्योंकि लोग सभी जानने वाले हो गये हैं। जैसे यहाँ दिन-प्रतिदिन नॉलेजफुल बनते जाते हो, वैसे ही दुनियां के लोग भी विज्ञान की शक्ति से, विज्ञान की रीति से नॉलेजफुल होते जाते हैं। वह आप लोगों के संकल्पों को भी मस्तक से, नयनों से चेहरे से, चेक कर लेते हैं। जैसे यहाँ ज्ञान की शक्ति भरती जाती है, वहाँ भी विज्ञान की शक्ति कम नहीं है। दोनों का फोर्स है। अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकते। इसलिए तुम निमित्त बनी हुई आत्माओं को इतना ही विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म के ऊपर अटेन्शन रखना पड़े। अगर अटेन्शन नहीं होता है तो आप लोगों के चेहरे में ही रेखाएं टेन्शन की दिखाई पड़ती हैं। जैसे रेखाओं से लोग जान लेते हैं कि यह क्या-क्या अपना भाग्य बना सकते हैं। तो अगर अटेन्शन कम रहता है तो चेहर पर टेन्शन की रेखाएं दिखाई पड़ती हैं। उस माया के नॉलेजफुल जान लेते हैं, वह भी कम नहीं। आप लोग अपने आपको भी कभी अलबेले होने कारण परख न सको लेकिन वह लोग इस बात में आप लोगों से तेज हैं। क्योंकि उन्हों का कर्त्तव्य ही यही है। इसलिए निमित्त बने हुए को इतनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़े। कोई भी बात मुश्किल लगती है तो कोई कमी है ज़रूर। अपने आप में निश्चयबुद्धि बनने में कब कुछ कमी कर लेते हैं। जैसे बाप में 100ज्ञ् हैं, चाहे एक तरफ आप एक निश्चयबुद्धि हो, दूसरे तरफ सारे विश्व की आत्माएं क्यों न हो, लेकिन इसमें डगमग नहीं हो सकेंगे। ऐसे ही चाहे दैवी वा ईश्वरीय आत्माओं द्वारा वा संसारी आत्माओं द्वारा भले कोई भी डगमग कराने के कारण बनें। लेकिन अपने आप में भी निश्चयबुद्धि की कमी नहीं होनी चाहिए। इसलिए रूहाब के साथ रहम भी रखना है। अकेला रूहाब नहीं, रहम भी हो।

निश्चयबुद्धि हो कल्याण की भावना रखने से दृष्टि और वृत्ति दोनों ही बदल जाते हैं। कैसा भी कोई क्रोधी आदमी सामना करने वाला वा कोई इन्सल्ट करने वाला, गाली देने वाला हो, लेकिन जब कल्याण की भावना हर आत्मा प्रति रहती है तो रोब बदलकर रहम हो जायेगा। फिर रिजल्ट क्या होगी? उसको हिला सकेंगे? वह शुभ कल्याण की भावना उसके संस्कारों को परिवर्तन करने का फल दिखायेगी। यह ज़रूर होता है -- कोई बीज़ से प्रत्यक्ष फल निकलता है, कोई फौरन प्रत्यक्ष फल नहीं देते, कुछ समय लगता है। इसमें अधीर नहीं होना है कि फल तो निकलता ही नहीं है। सभी फल फौरन नहीं मिलते। कोई-कोई बीज फल तब देता है जब नेचरल वर्षा होती है, पानी देने से नहीं निकलता। यह भी ड्रामा की नूँध है। अब अविनाशी बीज़ जो डाल रहे हो - कोई तो प्रत्यक्षफल दिखाई देंगे। कोई फिर नेचरल केलेमिटीज होंगी, जब ड्रामा का सीन बदलने वाला होगा तो वह नेचरल वायुमण्डल वातावरण उस बीज़ का फल निकालेगा। विनाश तो होगा यह तो गारण्टी है। जब बीज़ ही अविनाशी है तो फल न निकले - यह तो हो नहीं सकता। लेकिन कोई नज़दीक आते हैं, कोई पीछे आने वाले हैं तो अभी आयेंगे कैसे? वह फल भी पीछे देंगे। इसलिए कभी भी सर्विस करते यह नहीं देखना वा यह नहीं सोचना कि जो किया वह कोई व्यर्थ गया। नम्बरवार समय प्रमाण फल दिखाई देते जायेंगे।

तो यह सक्सेसफुल ग्रुप है, नॉलेजफुल है, सर्विसएबल है। यह छाप है। अपने इस ट्रेड-मार्क को सदैव देखते रहना। त्रिमूर्ति छाप लगी ना। और यही स्मृति में रख कर हर सर्विस के कदम को पदमों की कमाई में परिवर्तन कर चलना है। यह चेक करो कि हर संकल्प से पदमों की कमाई जमा की? हर वचन से, हर कर्म से, हर कदम से पदमों की कमाई जमा की? नहीं तो यह कहावत किसलिए है - हर कदम में पदम हैं? पदम कमल पुष्प को भी कहते हैं ना। तो पदम समान बनकर चलने से हर संकल्प और हर कदम में पदमों की कमाई कर सकेंगे। एक संकल्प भी बिना कमाई के नहीं होगा। अब तो ऐसा अटेन्शन रखने का समय है - एक कदम भी बिना पदम की कमाई के न हो। निमित्त बना हुआ ग्रुप है ना। ताजधारी तो होना ही है। अपनी ज़िम्मेवारी का ताज जितना-जितना धारण करेंगे उतना दूसरे की ज़िम्मेवारी का ताज भी धारण कर सकेंगे। जो निमित्त टीचर्स हैं, ज्यादा नज़र तो आप लोगों में सभी की है। सामने एग्ज़ाम्पल तो आप हो। इसलिए ज्यादा ज़िम्मेवारी आप लोगों के ऊपर है। आप लोग एक दर्पण के रूप में उन्हों के आगे हो। आपके नॉलेज की स्थिति के दर्पण से अपने स्वरूप का साक्षात्कार कराने वाले दर्पण आप हो। तो जितना दर्पण पावरफुल उतना साक्षात्कार स्पष्ट। तो उसकी स्मृति पावरफुल रहेगी। तो ऐसा दर्पण हरेक हो जो सामने कोई आवे तो अपना साक्षात्कार ऐसा स्पष्ट करे जो वह स्मृति उसको कभी न भूले। जैसे अपनी देह का साक्षात्कार होने बाद भूलते हो? जब देह अविनाशी स्मृति में रहती है तो यह भी ऐसा साक्षात्कार कराओ, जो वह स्मृति कभी भूले नहीं। पावरफुल दर्पण बनने के लिए मुख्य धारणा कौनसी है? जितना-जितना स्वयं अर्पणमय होगा उतना ही दर्पण पावरफुल। ऐसे तो अर्पणमय हो। लेकिन जो संकल्प भी करते हो, कदम उठाते हो वह पहले बाप के आगे अर्पण करो। जैसे भोग लगाते हो तो बाप के आगे अर्पण करते हो ना। उसमें शक्ति भर जाती है। तो यह भी ऐसे हर संकल्प, हर कदम बाप को अर्पण करो - जो किया, जो सोचा। बाप की याद अर्थात् बाप के कर्त्तव्य की याद। जितना अर्पणमय के संस्कार उतना पावरफुल दर्पण। हर संकल्प निमित्त बनकर करेंगे। तो निमित्त बनना अर्थात् अर्पण। नम्रचित्त जो होते हैं वह झुकते हैं। जितना संस्कारों में संकल्पों में, झुकेंगे उतना विश्व आपके आगे झुकेगी। झुकना अर्थात् झुकाना। संस्कार में भी झुकना। यह संकल्प भी न हो - दूसरे हमारे आगे भी तो कुछ झुकें? हम झुकेंगे तो सभी झुकेंगे। सच्चे सेवाधारी होते हैं वह जब सभी के आगे झुकेंगे तब तो सेवा करेंगे। छोटे भी और प्यारे होते हैं। इसलिए अपने को सिकीलधे समझो। सर्व के स्नेही हो। बड़ों को तो फिर भी कहेंगे, छोटे तो छूट जाते हैं। लेकिन अपने में कोई कमी नहीं रखना। सभी के आगे जाने का लक्ष्य जरूर रखना है। आगे बढ़ते हुए भी आगे बढ़ाने वालों का रिगार्ड नहीं छोड़ना है। बढ़ाने वालों का रिगार्ड रखेंगे तब वह आपका रिगार्ड रखेंगे, आपको देख अन्य करेंगे।

हैंड्स अर्थात् विशालबुद्धि, वे सभी तरफ देखते हैं कि नुकसान किस में हैं, लाभ किस में है। सभी विशालबुद्धि, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी हो। कोई भी कर्म देखकर पीछे करो। फिर यह कभी नहीं कहेंगे कि न मालूम कैसे यह हो गया। जब चेकिंग कम होती है तब हो जाता। त्रिकालदर्शी के यह शब्द नहीं हैं कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। मास्टर सर्वशक्तिमान चाहे और वह न कर सके, हो सकता है? अब यह भाषा खत्म करो। शक्तियां हो ना। शक्तियों का कर्म और संकल्प समान होता है। संकल्प एक और कर्म दूसरे - तो यह शक्ति की कमी है। अच्छा।